ARTICLE 356 AND DEMOCRACY
जब हम लोकतंत्र कहते है तो आशय होती है जनता, और हम आश्रित हो जाते है भारत के आईन पर,सर्वोच्च न्यायालय का कार्य है यह देखना की सरकार की कार्यप्रणाली उस लोकतंत्र के आश्रित तथ्यात्मक सविंधान के तहत चल रही है या नही?? अनुच्छेद 356 राज्यपाल को विशेषाधिकार देता है की वह अपने विवेक अनुसार यह तय कर सके कि राज्य की शासन सविंधान के अनुरूप चल रही है या नही?अब जब विवेकानुसार निर्णय की स्वतंत्रता मिल जाती है तो फ़िर अपनी मर्जी की जोर आजमाइश भी शुरू होना लाज़मी है। 356 तब और अहम हो जाता है जब किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नही मिलता,फिर सत्ता की गेंद राज्यपाल के पाले में और जनता मात्र दर्शक। लोकतंत्र फिर बहुत सीमित नजर आने लगता है। त्रिशंकु जनादेश के बाद क़ायदे अनुसार राज्यपाल चुनाव में सबसे बड़े दल विजेता के विधाननेता को सरकार बनाने का न्योता देते है। महाराष्ट्र के राज्यपाल ने पहले भाजपा को निमंत्रण दिया ,भाजपा ने मना किया क्योंकि उसकी साथी पार्टी शिवसेना सत्ता के मद में अंधी होकर ,अपनी विचारधारा से समझौता कर ,मुख्यमंत्री की पद की लालची बन गयी थी। जनादेश भाजपा -शिवसेना गठबंधन को था,लेक...