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UNIFORM CIVIL CODE

भारतीय सविंधान देश के सबसे बड़े और अंतिम  मान्य क़ानून के तौर पर जब शक्ल अख्तियार कर रहा था तब सविंधान निर्माताओं के बीच एक अहम सवेंदनशील मसला था,विविध प्रकार के पंथ ,मज़हब में  विश्वास करने वाले लोगों को उनके हिस्से की आज़ादी देने के साथ साथ यह सुनिश्चित करना कि कानून के समक्ष सभी जन एक होंगे। समान नागरिक संहिता की बात  उस समय यह कह के टाल दिया गया था कि  देश के नागरिक और सामाजिक ढाँचा इसके लिए अभी पूरी तरह तैयार नही लेकिन  अनुच्छेद 44 में नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत भविष्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड को देश में सभी समुदायों के साथ मुक़म्मल वार्ता कर  उनको विश्वास में लेकर लागू करने के निर्देश  दिए गए थे।  सविंधान के भाग 4 डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पालिसी की कुँजी आर्टिकल 37 है जिसके तीन प्रमुख आयाम है।पहला की यह गैर न्यायीक है,मतलब कोर्ट में इसके तहत कुछ भी मांग नही की जा सकती।दूसरा की देश चलाते वक्त यह सरकार के ध्यान में होना चाहिए।तीसरा की जब भी संसद कोई कानून बनाए तब सभी निर्देशित तत्व संज्ञान में रखने होंगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 बरस बाद ...