चाटूकारों के नाम हास्य लेख

हे इस चराचर जगत्‌ के समस्‍त  चापलूसो! आप पर कुछ लिखने से पहले आपको मेरा कोटि- कोटि प्रणाम! मुझे आप मेरी इस धृष्टता के लिए क्षमा करेंगे। आप पर मैं तो क्‍या, व्‍यास जी होते तो भी लिखने से पहले सौ बार दंड- बैठक निकाल लेते। उसके बाद भी आप पर लिखने का शायद ही दुस्‍साहस कर पाते। यह तो मेरा दंभ है कि हजार बारह सौ शब्दों का व्‍यंग्‍य लिखने वाला टुच्‍चा सा दिशाहीन, दशाहीन बुद्धिजीवी आप पर लिखने का दुस्‍साहस कर रहा है। आप मेरी इस गुस्‍ताखी को माफ करेंगे क्‍योंकि आप पर लिखना केतू पर थूकना जैसा है पर क्‍या करूं, अगर न लिखूं तो उपवास रखने के बाद भी  लिखे बिना मुझे कब्‍ज हो जाती है और आप तो जानते ही हो कि कब्‍ज हर बीमारी की जड़ है।

हे साहब के प्रिय चापलूसो। साहब जितना आपसे प्रेम करते हैं उतना तो अपनी बीवी से भी नहीं करते होंगे। मैं तो बस अपनी कब्‍ज को दूर करने के लिए आप पर लिख रहा हूं। लिखने के बहाने आपको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं। आप प्रातः स्‍मरणीय हो। आप किसी भी न काम करने वाले को साहब की नजरों से सातवें आसमान पर चढ़ा सकते हो तो किसी दिन- रात जिंदगी भर काम करने वाले को एक ही धक्‍के में नरक में गिरवा सकते हो। इस चराचर जगत्‌ के छोटे से छोटे ऑफिस में जो आप न होते तो मुझ जैसों को काम का श्रेय कभी का मिल चुका होता।

हे हर युग में साहबों के प्रिय रहे चापलूसो! युग चाहे कोई भी रहा हो। आपकी हर युग में चांदी रही है। पाषाण युग तक में आपकी चांदी थी। दस भुवनों में कोई खुश हो या न हो पर तुम हर भुवन में हमेशा औरों को धुंआ देने, दिलवाने के बाद सदा प्रसन्‍न रहे हो। इतिहास साक्षी है कि आप चापलूसी का सदुपयोग कर चुपड़ी -चुपड़ी खाते रहे हो ।
इस धरती पर हर युग बदला। सतयुग गया तो त्रेता आया। त्रेता गया तो द्वापर आया। द्वापर गया तो कलियुग आया पर हे चापलूसो ! आप हर युग में विद्यमान रहे, विराजमान रहे।
 है चापलूसों अब वार्ता मोड से निकल कर आगे बढ़ते है और चाटूकारों के कुछ विशेष गुणधर्मों से आपका तार्रुफ करवाते है।गौर कीजियेगा, नोट कीजिएगा, चार ग्राम मुस्कुराईएगा और   अगर गुस्सा होना होगा तो भी हो जाइएगा।हाँ जाते जाते वैधानिक चेतावनी जरूर पढ़ते जाइएगा।


आचार्य खल्लटक ने चाटुकारिता को परिभाषित कहते हुए कहा है 
"चाटुकार चक चक चतुर,चालू चपल चरित्र।
चाट-चाट चप्पल चरण,करता रहे पवित्र।।"
 आचार्य खल्लटक की पंक्तियों ने चाटूकार के लक्षणो का बहुत ही सटीक विश्लेषण किया है। चाटुकार का चातुर्य चक चक चमकता रहता है,अपनी दमक सनक में व्यस्त चाटूकार अपने चरित्र को हथियार बनाकर उसे बिजली की गति से दौड़ाता रहता है। अपने चरित्र को मोबाइल यानी चपल कर छोड़ देता है फिर कथित स्वामी के चरण  को चाट चाट उसे पवित्र करता रहता है।
संस्कृत शब्द ‘चाटु’ का अर्थ  हैं मीठी-मीठी, चटपटी, प्रशंसापरक आदि प्रकार की बातें, बहुधा दूसरे को खुश करने तथा उसकी अनुकंपा पाने के लिए की गयी बातें । ‘चाटुकार’ (चापलूसी करने वाला) शब्द इसी से बना है ।

चाटुकारिता  एक हसीन बीमारी है,बहुत ही हसीन ,हो जाए तो मरीज मदमस्त। कई दफा मरीज़ इस गफ़लत में जीता रहता है कि वह अपने स्वामी का सम्मान करता है या उनके निर्देशो का विधिपूर्वक पालन कर रहा है। चाटूकार कभी कभार बड़प्पन के दम्भ में  जीता है,ख़ुद ही उधेड़ता है और ख़ुद ही उसे सिलता है और कहता है यह तो कर्तव्य निर्वहन है।सच इससे  भिन्न होता है वह यह जानता है फ़िर भी कभी ज़ाहिर नही होने देता और यही तो विशेषता है एक माहिर चाटूकार की  लेकिन सावधान ! चापलूस अधीनस्थ मक्कार भी हो सकता है।

मक्कारी चापलूसी का बाई प्रोडक्ट है बोले तो  अन्य उत्पाद।अपने स्वामी को रिझाने के लिए मीठी मीठी प्रंशसा परक बातों का जाल बिछाने में बहुधा यही होता है कि चाटूकार की बची खुची वफादारी भी नेस्तनाबूद हो जाती है।वह शने शने अधीनस्थ मक्कार होने की तरफ़ बढ़ता जाता है और एक दिन बड़े शान से वह तमग़ा हासिल भी कर लेता है।

#ध्यान_आकर्षण

चापलूस, चाटुकार या चमचे ऐसे प्राणी होते हैं जिनके लिए हिन्दी में एक लोकोक्ति बड़ा सटीक है – ‘जिहि की खाई, तिहि की गाई।’

मार्क ट्वेन ने भी कहा था, ‘We despise no source that can pay us a pleasing attention.’ अर्थात्‌ हम ऐसे किसी स्रोत से घृणा नहीं करते जो हम पर सुखद ध्यान दे सकता है।चाटूकार ध्यान  पाने का भूखा होता है ,वह चाहता है अपने स्वामी का ध्यान और  उस चरम सुख की प्राप्ति के लिए वह कोई भी पापड़ बेलने के लिए सहज ही तैयार रहता है।

#स्वामित्व_का_इत्र_अत्र_तत्र_सर्वत्र

चाटुकारिता किसे नही पसंद ,स्वामित्व जिसे भी मिले वह दोनों हाथों से इसे लेना चाहता है ।यह ऐसा इत्र है जिसकी सुगंध अत्र तंत्र सर्वत्र है शायद यही कारण रहा होगा कि नज़ीर ने लिखा है 
 जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उससे सदा राज़ी है
सच तो यह है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है।

 स्वामी लोग समझते हैं वह तो हमारी सेवा कर रहा है, और उसे अपने आस-पास रखे रहते हैं पर अगर महात्मा गांधी के शब्दों में कहा जाए तो – ‘ख़ुशामद और शुद्ध सेवा में उतना अन्तर है जो झूठ और सच में है।’

स्वामी लोग प्रायः ऐसे चाटूकार से घिरे रहना पसंद करते है,हो भी क्यो न ,यही तो प्रविर्ती है जो आधार है इस हसीन बीमारी का।
सरदार पटेल ने कहा था, ‘जिन्हें ख़ुशामद प्रिय होती है, उन्हें सच्ची बात मीठी भाषा में कही जाय तो भी कड़वी लगती है।
जिन्हें ख़ुशामद पसंद है ऐसे लोगों के लिए तो यही कहा जा सकता है कि
बार पचै माछी पचै पाथर हू पचि जाय।
जाहि ख़ुशामद पचि गई ताते कछु न बसाय


 जार्ज चैपमैन की बायरन्स कांस्पिरेसी में कही बात भी  ध्यान में रखें कि ‘Flatterers look like friends as wolves like dogs.’ अर्थात्‌ जैसे भेड़िये कुत्तों जैसे लगते हैं, वैसे ही चापलूस लोग मित्रों जैसे लगते हैं।

चापलूसी न सिर्फ़ दिखावटी मित्रता के समान है बल्कि अत्यंत निकृष्ट प्रकार का शत्रु है। …. और आत्म-प्रेम चापलूसों में सबसे बड़ा चापलूस है।

#वैधानिक_चेतावनी

 अपनी कब्ज को दूर करने के लिए लिखी गईं यह पोस्ट और यहाँ कही गयी सभी बातें तार्किक है और अगर इनका किसी भी जीवित व्यक्ति से कोई प्रत्यक्ष ,परोक्ष सम्बंध हो भी तो भी लेखक उसकी पुष्टि नही करता ,इशारा जरूर करता है औऱ यह विदित होगा कि समझदारो को इशारा ही काफ़ी होता है ।हाँ , लेखक मानवीय मूल्यों का अनुसरण करते हुए चाटूकारिता जैसी हसीन बीमारी से ठीक होने की दुआ जरूर करता रहेगा। 

हिन्दी की एक लोकोक्ति है  – ‘ऊँट बिलाई ले गयी, ‘हां जी, हां जी’ कीजै।’हमें सभ्यता, शिष्टाचार और ख़ुशामद में फ़र्क़ करने की आदत डालनी होगी तभी हम एक सभ्य स्वस्थ्य समाज का निर्माण कर पायेंगे।

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